राग विरागिनी – Man Poem In Hindi
मन है चंचल
मन है विहवल
एक प्रेम रागिनी फिरती है
मन में पीड़ा लिए हुए
राग- विराग में चलती है….
नहिं चाह उसे अब उसकी
नहिं राह अब निहारती है
सांस कब अब रुक जाए
आ जाओ तुम
आस यही अब रहती है
मन में पीड़ा लिए हुए
राग -विराग में चलती है….
जो घनीभूत पीड़ा थी
आंसू बनकर बह गए वह
हाड़ मांस की काया भी
कंकाल बन कर रह गए वह
प्रेम न कम होने पाए
विरह वेदना कहती है
मन में पीड़ा लिए हुए
राग-विराग में चलती है….
अंजनी पांडेय साहब
Anjani Pandey