और किस हद तक गुज़रूं मै – Hindi Sad Poem
और किस हद तक गुज़रूं मै
किताबों से रिश्ता तोड़ लिया
सब का भरोसा भूल गया।
यारों में भी मन नहीं लगता मेरा
एक कमरे पड़ा रहता हूं।
ख़त लिये तेरा
दर्द पहले भी हुआ पर इस
तरह से नहीं।
रात को नींद भी दूर है।
हाल रोने के कर दिये तूने
हंसना याद ना रहा मुझे ।
हफ्तों से पड़ा हूं बंद कमरे में
बाहर निकला ही नहीं
आंसू से दिन शुरू मेरा
चिल्लाहट पर खतम
बावला सा बना फिरता हूं
मोहल्ले में
कभी कभाक लोग मुझ पर
तरस करते हैं।
ऐ खुदा इससे सही मौत है।
और किस हद तक गुजरुं मै
Sudhanshu Krnwal